YouTube launches new features video sharing and massaging to users in app worldwide.

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YouTube today is launching a new sharing feature in its mobile app, previously in testing with users in select markets.  The feature allows YouTube users to send their friends videos and chat from within a new tab in the mobile app – effectively turning YouTube into a mobile messenger of sorts. The feature has been in testing since the middle of last year, and, at the beginning of 2017, rolled out to users in Canada as something of a “soft launch.” It later expanded to parts of Latin America, the company tells us. Following the feedback gained from these long-term initial tests, YouTube felt it was ready to debut the sharing feature to a global audience. That roll out begins today, but won’t reach all YouTube users worldwide for a few days. In other words, if you don’t see the sharing option yet – just wait, you will soon. Since its debut in tests, YouTube says it has made some slight changes to the user interface for sharing, including the way the chat interface

रहस्यमई ईस्टर आइलैंड



स्थानीय भाषा में रापा नुई के नाम से जाने वाले एक ही पत्थर से बनी विशाल मूर्तियां यह आइलैंड पर आपको जगह जगह देखने मिलेगी। यह आइलैंड अपनी 800 से ज्यादा बड़ी-बड़ी मूर्तियों से प्रचलित है। यह मूर्तियां प्राचीन लोग रापा नुई की प्रजाति ने बनाया था। इनमें से सबसे बड़ी मूर्ति 35 फीट ऊंची और लगभग 75 टन वजनी है। यह मूर्तियां 1200 साल पुरानी है। प्रशांत महासागर में सबसे दूर पोलिनेशिया आईलैंड पर यह विशाल मूर्तिया दुनिया के लिए एक पहेली बन कर रह गई है।

यह मूर्तियां किसने बनाई क्यों बनाई और वज़न में 75 टन वजन की मूर्तियां कैसे बनाई इस पर पूरी दुनिया के विद्वानों का अलग अलग मत है लेकिन इसके पीछे की ठोस वजह और रहस्य आज तक पता नहीं चला।
प्रशांत महासागर से 1500 मिल दूर समुद्री चट्टानों के बीच छिपे इस आइलैंड पर प्राचीन रापा के लोग रहते थे इस टापू पर 7 मीटर ऊंची विशालकाय मूर्ति बनाने के लिए प्राचीन सभ्यता के लोग असमर्थ होगे ऐसा माना जाता है।


इस टापू की सबसे पहले जानकारी डच एडमिरल जेकब रोगवीन द्वारा 1722 मे मिली जब जैकब रोगवीन अपने साथियों के साथ 3 जहाज में यह टापू पर आने लगे तो उनको दूर से ही विशालकाय मानव आकृति नजर आई लेकिन पास जाने पर पता चला कि यह तो सिर्फ मूर्तियां है और वह भी इतनी बड़ी उन्होंने पहले ऐसी विशालकाय मानव आकृति की मूर्तियां कभी नहीं देखी थी उस दिन इस्टर संडे था इसलिए उसने यह टापू का नाम ईस्टर आईलैंड रख दिया।



विद्वानों के हिसाब से विशालकाय मूर्तियां ज्वालामुखी के दौरान बनी विशालकाय चट्टानों से तराश कर बनाई गई थी इस टापू पर सोए हुए ज्वालामुखी के मुहाने पर आज भी ऐसे बड़े-बड़े पत्थर देखे जाते हैं। जानकारों का कहना है कि इन्हें ज्वालामुखी के पत्थरों को तोड़ कर इकट्ठा किया गया था इनमें से कितने पत्थर मूर्ति कि शकल में बने हुए हैं और कितने पत्थर यूं ही पड़े हुए हैं और 400 से ज्यादा आधी तरासी से हुई मूर्तियां ज्वालामुखी के मुहाने के अंदर यूं ही आज भी पड़ी हुई है। इनमें से कई मूर्तियां ऐसी है जिन्हें बस बाहर लाना ही रह गया था लेकिन कोई ऐसी वजह रही होगी जो आज तक वह मूर्तियां वैसी की वैसी वहां पर पड़ी हुई है।



अब सवाल ये उठता है ऐसे वीरान टापू पर विशालकाय मूर्तियों की सेना बनाने के पीछे का मकसद क्या हो सकता है?? और यह लोग अचानक से अपने अधूरे काम को छोड़कर कहां चले गए ?? क्या वह इंसान ही थे जिन्होंने ऐसे ही बड़ी-बड़ी विशालकाय मूर्तियां अपने हाथों से तरासी थी या फिर कोई और था ??

आइए जानने की कोशिश करते हैं



सबसे पहला और सबसे प्रचलित तर्क यह है के ऐसी विशालकाय मूर्तियां सिर्फ एलियंस ही बना सकते हैं।
कई टीवी चैनल्स की रिपोर्ट और दस्तावेजों से यही पता चलता है कि हजारों साल पहले ऐसी विशालकाय मूर्तियां सिर्फ एलियंस ही बना सकते थे क्योंकि हजारों साल पहले ऐसी विशालकाय मूर्तियां बनाना इंसानों के बस की बात नहीं थी और ना ही उस वक्त इतने बड़े मशीन थे के इतनी भारी-भरकम मूर्तियों को इधर-उधर ले जाया जा सकता था।

लेकिन इस तर्क में कोई दम नहीं है क्योंकि एलियंस लोग ऐसा क्यों करेंगे क्यों एलियंस इतने बड़े बड़े पत्थरों को मूर्ति बनाकर ऐसे ही छोड़ देगे और ना ही इसके बनाने के पीछे का मकसद पता चलता है।


   

तो आखिर इसे बनाया किसने था। यूनिवर्सिटी ऑफ मानचेस्टर के डॉक्टर पोलैंड रिचॅडस इस मूर्तियों का रहस्य खोजते हुए इसी टापू के एक ठंडे ज्वालामुखी के पास पहुंच गए उनको इस ठंडे पड़े हुए ज्वालामुखी के अंदर मूर्ति बनाने के बहुत सारे अवशेष मिले। यहीं पर उन्हें एक 7 इंच लंबी कुल्हाड़ी मिली और दूसरे औजार भी मिले। इसके बाद यह साफ हो पाया की यह विशालकाय मूर्तियां एलियंस ने नहीं पर उसी वक्त रहे प्राचीन लोगों ने ही बनाई थी। आगे खोज करने पर यह पता चला कि यह मूर्तियां उस वक्त के प्राचीन लोगों की धार्मिक मान्यता के अनुसार बनाई गई थी।



यह बातों से यह तो पता चल जाता है कि यह विशालकाय मूर्तियां किसने बनाई और क्यों बनाई लेकिन सबसे बड़ा सवाल अभी भी बाकी है कि यह विशालकाय मूर्तियां किस लिए बनाई गई थी??
खोजकर्ताओं का सबसे बड़ा सवाल यह था के ऐसी भारी-भरकम मूर्तियां एक जगह से दूसरी जगह प्राचीन लोग कैसे ले जा सकते थे??
यह बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि इतनी विशालकाय मूर्तियों को उनके बनाने की जगह से 10 मील दूर बिना साधन के कैसे ले जा सकते थे??

कुछ लोगों के हिसाब से इसे लकड़ी के बड़े-बड़े गोल लट्ठों की मदद से रेंगते हुए ले जाया गया होगा। लेकिन टापू की मिट्टी के परीक्षण से पता चलता है कि इनकी मिट्टी बड़े बड़े पेड़ों को खड़े रखने के लिए समर्थ नहीं थी जितनी बड़ी गोल लकड़ियां इस मूर्तियों को रेंगने के लिए चाहिए थी।



दूसरा यह तर्क दिया जाता है के पेड़ों से बनाए गए लंबे और बड़े-बड़े रस्से इन मूर्तियों को खींचकर एक जगह से दूसरी जगह ले जा सकते हो मगर यह भी तर्क असंगत लगता है। क्योंकि 75 टन वजनी विशालकाय मूर्ति रस्सो से खींची नहीं जा सकती।

इन विशालकाय मूर्तियों को ज्वालामुखी से किनारे तक कौन लाया और इन्हें बनाने वाले प्राचीन लोग उसको आधा अधूरा छोड़ कर अचानक से क्यों चले गए यह सब अनसुलझी पहेली है। आशा करते हैं शायद हमें भविष्य में और ज्यादा प्रमाण मिले ताकी हम यह अनसुलझी पहेली को सुलझा सकें।

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