YouTube launches new features video sharing and massaging to users in app worldwide.

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YouTube today is launching a new sharing feature in its mobile app, previously in testing with users in select markets.  The feature allows YouTube users to send their friends videos and chat from within a new tab in the mobile app – effectively turning YouTube into a mobile messenger of sorts. The feature has been in testing since the middle of last year, and, at the beginning of 2017, rolled out to users in Canada as something of a “soft launch.” It later expanded to parts of Latin America, the company tells us. Following the feedback gained from these long-term initial tests, YouTube felt it was ready to debut the sharing feature to a global audience. That roll out begins today, but won’t reach all YouTube users worldwide for a few days. In other words, if you don’t see the sharing option yet – just wait, you will soon. Since its debut in tests, YouTube says it has made some slight changes to the user interface for sharing, including the way the chat interface

रहस्यमई नाज्का लाइन्स

दुनिया के सात अजूबे के बारे में सब को तो पता है लेकिन दुनिया में कई ऐसी चीजें हैं जो अभी तक किसी को शायद ही पता हो और उनमें से कई ऐसी रहस्यमई चीजें हैं जो इंसान की समझ से परे है। यह दुनिया अजीबो गरीब और रहस्यमई चीजों से भरी हुई है इन रहस्यमई चीजों के बारे में जानने की उत्सुकता हम सभी में होती है जिनका जवाब आज भी वैज्ञानिक लगातार ढूंढने में लगे हुए हैं ।

चलिए आज देखते हैं इस ब्लॉग में कुछ ऐसी ही रहस्यमई चीज के बारे में जो हम सबको सोचने पर मजबूर कर देती है।

दोस्तो आप कभी हवाई जहाज से किसी इलाके पर उड़ रहे हो और नीचे धरती पर आपको सैकड़ों मीटर में फैले हुए बड़े बड़े विशाल चित्र दिखाए दें तो हैरान होना लाजमी है। पहली बार जब इन चित्रों को देखा गया तो पूरी दुनिया हैरान रह गई लोगों को समझ में नहीं आया कि इन विशाल चित्रों को आख़िर बनाया किसने और क्यों बनाया, कब बनाया और किस लिए बनाया गया। 


यह विशाल चित्र को "नाज्का लाइन्स" से जाना जाता है।
किसी अनजान सी सभ्यता के अस्तित्व की अनूठी विरासत हैं 'नाज्का रेखाएं' (नाज्का लाइन्स )। 80 किमी से भी अधिक क्षेत्रफल में फैले भूभाग में सैकडों रेखाचित्रों का संग्रह हैं । इन रेखाओं में पक्षी, बन्दर आदि जीवों के अलावा कई ज्यामितीय रेखाएं भी हैं, जिनमें त्रिभुज, चतुर्भुज आदि सदृश्य संरचनाएं शामिल हैं ।


लैटिन अमेरिका के पेरू में नाज्का मरुस्थल में संरक्षित ये संरचनाएं 'नाज्का संस्कृति' की विरासत मानी जाती हैं। स्थापित मान्यता के अनुसार इस संरचना का कालक्रम 200 BCE और 700 CE के मध्य का माना जाता है।
इन लंबी लंबी पत्थरों की कतारों को जमीन से देखने पर मकड़ी की जाल के अलावा और कुछ समझ में नहीं आता लेकिन ऊपर आसमान से देखने पर यही मकड़ी के जाल कलाकारी का एक शानदार नमूना पेश करता है।


सैकड़ों मीटर में फैली हुई यह लाइन आखिर किसने बनाई और इसके बनाने के पीछे का मकसद क्या था ? क्या आज से 2500 साल पहले इंसान के पास इतनी टेक्नोलॉजी थी के जो इतनी सटीक लाइन बना सके ? क्योंकि धरती पर खड़े रहकर इनके आकार के बारे में कुछ पता नहीं लगाया जा सकता इनका पूरा पैटर्न आसमान में काफी ऊंची जगह से नजर में आता है। क्या उस सभ्यता के पास ऐसे साधन थे इंसान को को आसमान में उड़ा सकते थे?

आइए जानने की कोशिश करते हैं।


इस खोज को सबसे ज्यादा पहचान जर्मन मैथमैटिशियन और आरक्योंलॉजिस्टि "मारिया रिची" की वजह से मिली। उन्होंने इन रेखाओं का गहराई से अध्ययन किया मकड़ी, छिपकली, मछली, शेर और बनदर के अलावा हमिंग बर्डस भी इन रेखाओं में साफ-साफ पहचाने जा सकते हैं।


इनमें इंसान के आकृति भी बनी हुई है। इनमें सबसे लंबा चित्र 200 मीटर की लंबाई में फैला हुआ है। पहले तो यही माना गया था कि यह सिंचाइ के लिए बनाई गई कुछ छोटी-छोटी नहरें हैं।

                

इंसानी फितरत है कि जो बात समझ में नहीं आए उन्हें बादलों की ताकत से जोड़ दो या फिर एलियंस के साथ जोड़ दो। कुछ टीवी चैनल्स या फिर कुछ किताबों की माने तो नाज्का के प्राचीन लोगों ने एलियंस के साथ मिलकर यह विशाल रेखाएं बनाई थी ताकि एलियंस अपनी उड़नतश्तरियां यहां उतार सके इसका मतलब यह हुआ कि यह रेखाऐ कुछ और न होकर एलियंस के एयरपोर्ट थे लेकिन इस तर्क से एक सवाल और खड़ा हो जाता है आखिर पेरू के नाज्का में एलियंस आते क्यों थे?
इस पर लोगों का दावा है कि एलियंस धरती पर मौजूद खनिज धातु आदि के बारे में जानना चाहते थे। वैसे ही ठीक जैसे हम मंगल की धरती पर क्या है वह जानना चाहते हैं इसलिए एलियंस को धरती पर पेरू के रेगिस्तान से अच्छी जगह कहीं नहीं मिली क्योंकि यहां सालों तक बारिश नहीं होती है, और यहां की मिट्टी में लोहा और उसके ऑक्साइड बहुत ज्यादा प्रमाण में मिलते हैं। एलियंस को नाज्का में बार-बार उतरना पड़ता था इसलिए उन्होंने यहां पर एयरपोर्ट बना लिया। चलिए एलियंस के यह तर्क को मान भी लिया जाए फिर भी इससे यह बात साबित नहीं होती की यह विशाल रेखाओ को पक्षियों और जानवरों की पैटर्न में ही क्यों बनाया गया?

              

एलियंस इन्हें सीधे-सीधे पैटर्न में भी बना सकते थे फिर भी कुछ लोग अपनी बातों को मनवाने के लिए और उसमे रोमांच वगैरह डालने के लिए अपने बातों को एलियंस के साथ जोड़ देते हैं ।

अब मान लो अगर यह एलियंस ने नहीं बनाया तो फिर किसने बनाया होगा? क्योंकि 2500 साल पहले इंसान का हवा में उड़ने का आज तक कोई सबूत नहीं मिल पाया। तो प्राचीन लोग बगैर हवा में जाएं इतनी सटीक लाइन कैसे बना सकते थे?

इनके बनाने के पीछे कई मत प्रचलित हैं।
एक मान्यता इनके धर्मिक महत्व को दर्शाती है लगभग हर फील्ड के एक्सपर्ट ने  इन विशाल रेखाओं का बारीकी से अध्यन किया और पाया की नाज्का लोगों ने इन विशाल रेखाओं को इसलिए बनाया था कि आसमान में रहने वाले उनके देवता उन्हें आसमान से स्पष्ट रुप से से देख सकें। हालांकि यह कभी पता नहीं चल पाया कि उनके देवता कौन थे? 

वहीं दूसरी मान्यता इन्हें खगोलीय पिंडों की स्थिति, अध्ययन और कैलेंडर के निर्माण से जोड़ती है इस तर्क के हिसाब से यह विशाल रेखाएँ एक संपूर्ण वेघशाला के रूप में काम करते थे। इन रेखाओं के जरिए सितारों की स्थिति बताई जा सकती थी। ऐसा नामुमकिन भी नहीं है क्योंकि हर प्राचीन सभ्यता में इस तरह की वेधशालाएं मिली है। 

इन तरीकों से यह तो पता चलता है कि इन्हें क्यों बनाया गया था पर यह नहीं पता चलता कि कैसे बनाया गया होगा? लेकिन कुछ खोजकर्ताओं के पास इसका भी जवाब है।


उल्लेखनीय है कि इन आकृतियों को इनके सही पैटर्न में आकाश मार्ग या फिर रिमोट हाइट से ही देखा जा सकता है। इस अनुमान की पुष्टि में वैज्ञानिक Jim Woodmann ने एक गुब्बारे का निर्माण किया जो आसमान में इतनी ऊंचाई पर उड़ सके जहां से साफ-साफ इन विशाल रेखाओं को देखा जा सके। जिम वुडमैन का मानना था कि ऐसे गुब्बारे बनाने में प्राचीन लोग सक्षम हो सकते थे। किन्तु उस काल में ऐसे किसी गुब्बारे के अस्तित्व का कोई प्रमाण नहीं मिलता।


वहीं कुछ वैज्ञानिकों का मानना था के प्राचीन लोग मैथमेटिक्स और जियोमेट्री में इतने पावरफुल थे के धरती पर रहकर बिना हवा में उड़े बिल्कुल सटीक लाइन बना सकते थे । ऐसे में बिना किसी अन्तरिक्षयान या हवाई सर्वेक्षण के धरती पर ऐसी विशालकाय संरचनाएं उकेरना वाकई आश्चर्यजनक है। 
लगभग 80 साल से इनका रहस्य यूं ही बरकरार है हजारों की संख्या में बने यह विशाल चित्र यह तो बताते हैं कि इनके बनाने के पीछे कोई ना कोई मकसद तो जरूर रहा होगा। इन आकृतियों का उद्देश्य चाहे जो भी रहा हो मगर ऐसी सभ्यताएं एक सवाल तो मन में उत्पन्न कर ही देती हैं कि- " जाने वो कैसे लोग थे ???"
UNESCO की 'विश्व विरासत सूची' में शामिल ये रचनायें जहाँ अभी भी कई रहस्यों को अपने में समेटे हुए हैं, वहीँ बदलती जलवायु से इनके अस्तित्व को खतरा भी पैदा हो गया है।



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